टीबी की दवा से कोरोना का इलाज! तैयारी शुरू
मुंबई कोरोना (Corona) से बुरी तरह जूझ रहे महाराष्ट्र के वैज्ञानिक और डॉक्टर भी इसका इलाज ढूंढने में जुटे हुए हैं। राज्य में प्लाज्मा थेरपी (plasma therapy) का ट्रायल सफल होने के बाद अब एक और तरीके पर काम जारी है। हॉफकिन रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक महाराष्ट्र के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट (एमईडी) के साथ मिलकर टीबी की दवा (Bacillus Calmette-Guerin) से कोरोना के इलाज के क्लिनिकल ट्रायल की तैयारी कर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर मल्टिपल ट्रायल की तैयारी के साथ ही भारत में इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) भी कोरोना के खिलाफ इस वैक्सीन की क्षमता को जांचने की तैयारी कर रहा है। इस ट्रायल के जरिए यह पता लगाया जाएगा कि क्या इससे कोरोना के इन्फेक्शन को ठीक किया जा सकता है? छोटे बैच और कम संक्रमित लोगों पर होगा ट्रायल 121 साल पुराने हॉफकिन रिसर्च इंस्टिट्यूट यह ट्रायल कोरोना से थोड़ा कम संक्रमित लोगों के छोटे बैच पर यह ट्रायल करेगा। राज्य के उन्हीं सरकारी मेडिकल कॉलेजों में यह ट्रायल किया जाएगा, जिसकी अनुमति राज्य सरकार और इंस्टिट्यूशलन एथिक्स कमिटी ने दे दी है। इसकी पुष्टि करते हुए एमईडी के सेक्रेटरी डॉ. संजय मुखर्जी ने कहा, 'हम अभी ड्रग कंट्रोल जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की अनुमति का इंतजार कर रहे हैं, उसके बाद ही ट्रायल शुरू होगा। बीसीजी से कोरोना के इलाज के बारे में बहुत चर्चा हो रही है। हम यह देखेंगे कि क्या बीसीजी के एक डोज से कोरोना का इलाज किया जा सकता है।' डॉ. संजय मुखर्जी ने आगे कहा, 'हम इस बात से पूरी तरह वाकिफ हैं कि एक थेरपी के रूप में बीसीजी के इस्तेमाल से सवाल उठेंगे लेकिन हमारे पास इसका कारण है कि हम इसपर भरोसा कर रहे हैं। नवजातों में टीबी के खिलाफ अवरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए बीसीजी का ही इस्तेमाल किया जाता है।' 'शुरुआती टेस्ट में बेहतर नतीजों से बढ़ी उम्मीद' सूत्रों ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि शुरुआती परीक्षों में बीसीजी कॉन्सेप्ट के नतीजे बेहतर आए हैं, इसीलिए इसके परीक्षण की दिशा में कदम आगे बढ़ाए जा रहे हैं। डॉ. संजय मुखर्जी ने कहा, 'इसे बहुत कम, औसत और गंभीर मामलों में टेस्ट किया गया है और नतीजे बेहतर रहे हैं। व्यापक तौर पर इसके ट्रायल से ही हम पूरी तरह से कुछ कहने की स्थिति में होंगे और इससे मरीजों को फायदा भी हो सकेगा।' दूसरी तरफ कुछ डॉक्टरों ने इसके प्रयोग पर चिंता भी जताई है। सवाल उठाने वाले डॉक्टरों का तर्क है, ' इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए दो से चार हफ्ते का समय लेता है जबकि कोरोना का नैचरल कोर्स दो हफ्ते का है। ऐसे में यह कैसे पता चलेगा कि बीसीजी ने कोरोना के खिलाफ काम किया या नहीं? कुछ मामलों में मरीज दो हफ्ते में या तो घर जा रहे हैं या मर जा रहे हैं। अगर मरीज बहुत बीमार हुआ तो कैसे पता चलेगा?'
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