उद्धव की कुर्सी का 'खेल', जानें MLC की शक्तियां
मुंबई जिस प्रकार संसद को चलाने के लिए दो सदन होते हैं। ठीक उसी प्रकार कुछ राज्यों में भी दो सदन होते हैं:- विधानसभा और विधान परिषद (Legislative Council)। विधान परिषद को उच्च सदन कहा जाता है और विधानसभा को निचला सदन। महाराष्ट्र में इसी उच्च सदन की एक सीट अब यह तय करने वाली है कि (Uddhav Thackeray) सीएम बने रहेंगे या नहीं। दरअसल, उद्धव ठाकरे सीएम हैं लेकिन किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। सीएम बनने के छह महीने के अंदर उन्हें निर्वाचित होना है लेकिन कोरोना के कारण कोई चुनाव नहीं बचा है। ऐसे में अब उद्धव ठाकरे तभी सीएम रह सकते हैं, जब राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी उन्हें विधान परिषद के लिए मनोनीत कर दें। उद्धव ठाकरे जनवरी में हुए विधान परिषद चुनावों में नहीं उतरे। उन्हें उम्मीद थी कि अप्रैल में होने वाले चुनाव में वह निर्वाचित हो जाएंगे। कोरोना के कारण विधान परिषद के चुनाव टल गए। ऐसे में अब उनके पास राज्यपाल का मनोनयन ही बचा है। कैबिनेट के प्रस्ताव के बावजूद अभी तक राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को मनोनीत नहीं किया है, ऐसे में गठबंधन सरकार की सांसें अटकी हुई हैं। उद्धव ठाकरे इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बात कर चुके हैं। शुक्रवार को वह राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से भी मिलने पहुंचे। अकसर मंत्री और मुख्यमंत्री बनाने के काम आता है विधान परिषद संविधान राज्यों को अधिकार देता है कि वे चाहें तो अपने राज्य में विधान परिषद बना सकते हैं। इसी राज्य के तहत कई राज्यों ने विधान परिषद का गठन किया है। कभी भंग ना होने वाली इस सभा के सदस्य छह साल तक अपने पद पर रहते हैं। अकसर बिना चुनाव लडे़ मंत्री या मुख्यमंत्री इसी सदन के सहारे अपनी कुर्सी बचाते हैं। संविधान का नियम है कि मंत्री या मुख्यमंत्री की शपथ लेने के छह महीने के अंदर आपको किसी भी एक सदन का सदस्य बनना होता है। विधानपरिषद और विधानसभा कुछ मामलों में बराबरी का हक रखते हैं। कुछ मामलों में विधानसभा के पास ज्यादा अधिकार हैं। सदस्यों की बात करें तो विधानसभा की तरह ही विधान परिषद का सदस्य भी मंत्री और मुख्यमंत्री बन सकता है। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधान परिषद के ही सदस्य हैं। विधान परिषद के सदस्य की शक्तियां विधानसभा और परिषद दोनों के ही सदस्यों को समान शक्तियां मिलती हैं। 1- सदन के सत्र के दौरान, सदन का सत्र शुरू होने के 40 दिन पहले या 40 दिन बाद तक सिविल मामलों में विधान सभा या परिषद के सदस्य को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। 2- सदन में कही गई बात के लिए कोई भी सदस्य किसी भी प्रकार के न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं है। सदन में दिए गए वोट के संबंध में भी सदस्यों को किसी को जवाब नहीं देना होता है। 3- सदन के सत्र के दौरान किसी भी केस के संबंध में सदन का सदस्य कोर्ट में उपस्थित होने या कोई सबूत देने से इनकार कर सकता है। विधान परिषद के कार्य 1-साधारण विधेयक विधानसभा या विधान परिषद में पेश किया जा सकता है लेकिन असहमति की स्थिति में विधानसभा प्रभावी है। 2. वित्त विधेयक को विधान परिषद में पेश नहीं किया जा सकता है। ना ही वह इसे नामजूर कर सकती है। विधेयक रोक लेने की स्थिति में 14 दिन में उसे अपने आप पारित मान लिया जाता है। 3. राज्यसभा चुनाव में भी विधान परिषद के सदस्य वोट नहीं दे सकते हैं। 4. विधान परिषद के माध्यम से उन लोगों को सदन का सदस्य बनाया जा सकता है, जो किसी कारणवश प्रत्यक्ष चुनाव ना जीत सके हों। 5- उच्च सदन होने के नाते विधान परिषद के सदस्य सत्तापक्ष की निरंकुशता पर अंकुश लगाने का काम करते हैं। 6. जन-कल्याण की योजनाओं और तमाम कानूनों पर बौद्धिक चर्चा के लिए इस सदन के योग्य सदस्य अपना बहुमूल्य योगदान देते हैं। स्थायी सदन होता है विधान परिषद विधान परिषद विधानमंडल का स्थायी सदन होता है। इसका मतलब है कि इसे भंग नहीं किया जा सकता है। इसके सदस्य दो वर्षों के रोटेशन के हिसाब से निर्वाचित और रिटायर होते रहते हैं। सदन के सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है। फिलहाल छह राज्यों में विधान परिषद है। हालांकि, आंध्र प्रदेश में विधान परिषद समाप्त करने के लिए प्रस्ताव पास किया गया है। इस पर संसद की मुहर लगने के बाद राज्य का विधान परिषद समाप्त कर दिया जाएगा। महाराष्ट्र में विधान परिषद के लिए कुल सदस्यों की संख्या 78 है। इसमें से 30 सदस्यों को विधानसभा के सदस्य के चुनते हैं। 22 सदस्यों को स्थानीय निकायों की ओर से चुना जाता है। सात सदस्यों को प्रदेश के स्नातक चुनते हैं। सात सदस्यों को प्रदेश के शिक्षक चुनते हैं। बाकी बचे 12 सदस्यों को राज्यपाल शिक्षा, विज्ञान, कला और सामाजिक क्षेत्र में योगदान के आधार पर चुनते हैं।
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