फडणवीस की नई फौज देगी उद्धव को टेंशन!
मुंबई शिवसेना से राजनीतिक मात खाए बीजेपी नेता शिवसेना के परंपरागत कोंकणी वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं। खास बात यह है कि इस काम में फडणवीस ने विनोद तावडे और आशीष शेलार जैसे बीजेपी के कोकणी नेताओं को दरकिनार कर अपनी प्राइवेट टीम की तरह काम करने वाले नेताओं को लगाया है। इसके बाद न सिर्फ राजनीतिक हलकों में, बल्कि बीजेपी के भीतर चर्चाओं का एक नया दौर शुरू हो गया है। रविवार को संपन्न हुई बीजेपी की वर्चुअल रैली से राजनीतिक हलकों में जो संदेश गया है, वह यही है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष की उपलब्धियों को जन सामान्य तक पहुंचाने के लिए इस वर्चुअल रैली का आयोजन किया गया था। रैली की निगरानी खुद पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कर रहे थे। फडणवीस ने ही इस रैली की रणनीति भी बनाई थी। पर फोकस इस रैली को सफल बनाने के लिए उन्होंने विनोद तावडे और आशीष शेलार जैसे वरिष्ठ नेताओं को अलग-थलग कर जिन चार नेताओं को जिम्मेदारी दी उनमें से तीन तो दूसरी पार्टियों से बीजेपी में आए हैं। इन नेताओं को अहम जिम्मेदारीइनमें प्रवीण दरेकर, प्रसाद लाड, निरंजन डावखरे शामिल हैं। बाहर से आए इन तीन नेताओं पर नजर रखने के लिए फडणवीस ने अपने खासमखास पूर्व मंत्री रविंद्र चव्हाण को इनके साथ लगाया। इसके अलावा कोंकण में बीजेपी के पुराने झंडाबरदारों की बजाय नारायण राणे और उनके बेटों को महत्व दिया गया। मुंबई में इस वर्चुअल रैली की सफलता के लिए मुंबई बीजेपी अध्यक्ष मंगलप्रभात लोढ़ा के साथ फडणवीस ने अपने खास सांसद मनोज कोटक को संयोजक और अमरजीत मिश्रा को सह संयोजक बनाकर जोड़ा। 75 विधानसभा सीटों पर दांव अब इस मोर्चे बंदी का गणित समझें। मुंबई, ठाणे, रायगढ़ और कोंकण शिवसेना का मजबूत वोट बैंक है। कोंकणी मतदाताओं की वजह से ही शिवसेना न सिर्फ कोंकण में बल्कि मुंबई और ठाणे महानगरपालिकाओं में भी अपनी सत्ता बनाती रही है। पिछले बीएमसी चुनाव में बीजेपी ने मुंबई में अपनी ताकत का लिटमस टेस्ट कर लिया है और मुंबई महानगरपालिका में शिवसेना को मात देने की ताकत का अंदाजा उसे हो गया है। इस बार का लिटमस टेस्ट विधासनसभा की उन 75 सीटों पर होगा, जिन पर महाविकास आघाडी के तीनों दलों का मजबूत कब्जा है। इनमें सिंधुदुर्ग जिले की 3, रत्नागिरी जिले की 5 और रायगढ़ जिले की 7 सीटें तो सीधे तौर पर शामिल हैं ही, इसके अलावा इसके पालघर की 6, ठाणे की 18 और मुंबई की 36 में से कई विधानसभा सीटों पर भी कोंकणी मतदाता बड़ी संख्या में हैं। किसके पास कितना दम?आज की स्थिति में सिंधुदुर्ग जिले की तीन सीटों में से सिर्फ 1 सीट बीजेपी की है। बाकी दो सीटें शिवसेना के पास हैं। रत्नागिरी जिले की पांच सीटों में से बीजेपी जीरो है। जबकि शिवसेना-एनसीपी के पास दो- दो सीटें हैं। एक सीट पर कांग्रेस है। रायगढ़ जिले की 7 सीटों में से बीजेपी 2, शिवसेना 3 और 2 सीट निर्दलीयों के पास है। पालघर जिले की 6 सीटों पर भी बीजेपी जीरो है जबकि शिवसेना, एनसीपी और सीपीआई के पास एक-एक सीट है। 3 सीटें बहुजन विकास आघाडी के कब्जे में हैं। यह है राजनीतिक परिदृश्य राज्य के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य के बारे में राजनीतिक विश्लेषकों का आकलन है कि जिस तरह से उद्धव ठाकरे और शरद पवार की ट्यूनिंग जुड़ रही है, वह बीजेपी के लिए जितना नुकसानदेह है, उससे ज्यादा नुकसानदेह देवेंद्र फडणवीस के राजनीतिक भविष्य के लिए है। क्योंकि उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहला काम यह किया है कि उन्होंने फडणवीस को दरकिनार कर सीधे बीजेपी के केंद्रीय नेताओं के साथ संबंध सुधारे हैं। देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे के बीच राजनीतिक कटुता को खत्म करने कराने का कोई प्रयास बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने भी नहीं किया है। उद्धव ठाकरे और शरद पवार सीधे नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ बात करते हैं। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि देवेंद्र फडणवीस की बेचैनी का सबसे बड़ा सबब यही है। बीजेपी की सत्ता जाने से पार्टी के नेता भले ही दुखी हैं, लेकिन फडणवीस का मुख्यमंत्री पद जाने का दुख दूसरी पंक्ति के किसी बीजेपी नेता को नहीं है। यही वजह है कि देवेंद्र फडणवीस को अगली फतह के लिए नई टीम का गठन करना पड़ रहा है।
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