श्रीप्रकाश से शुरू हुई STF की कामयाबी की कहानी जारी है...आज का दिन क्यों खास

लखनऊ का हो बाबू...पुलिस की गाड़ी से फिएट पर आ गए? 1998 में नवगठित के डीएसपी राजेश पांडेय ने जैसे ही सेलफोन उठाया। उधर से कर्कश आवाज में यह सवाल हुआ। राजेश ने पूछा... कौन? जवाब मिला... अब नाम भी बताना पड़ेगा का? हम बोल रहे हैं श्रीप्रकाश शुक्ला। अरे हम पूछ रहे कि पुलिस ने अपनी गाड़ी छीन ली क्या? अरे, जो बगल में बैठे हैं अडिशनल साहेब, आज हरी शर्ट में बहुत जंच रहे हैं। श्रीप्रकाश का मारा चाहते हैं, कहो तो दें गोली...एकै में निपट जाएंगे। यह किसी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि माफिया डॉन की हिमाकत और नेटवर्क का नमूना है। नब्बे के दशक में अपराध जगत में यूपी से लेकर बिहार तक एक ही नाम चर्चित था। अपहरण हो या जबरन वसूली, रेलवे के ठेकों के वर्चस्व की जंग हो या फिर कबाड़ नीलामी का ठेका... हर जगह गोरखपुर के श्रीप्रकाश शुक्ला का सिक्का चलता था। लखनऊ में श्रीप्रकाश शुक्ला ने अत्याधुनिक हथियारों से वीरेंद्र शाही समेत चार बड़े हत्याकांडों को अंजाम देकर पुलिस-प्रशासन को अलग तरह की चुनौती दे डाली थी। सामने चाहे कितना भी रसूखदार आदमी हो, उस पर गोली चलाने में श्रीप्रकाश के हाथ नहीं कांपते थे। शासन और सत्ता के लिए श्रीप्रकाश शुक्ला गले की फांस बनता जा रहा था। ऐसे में एडीजी लॉ ऐंड ऑर्डर अजय राज शर्मा की देखरेख में 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तीन अधिकारियों- तत्कालीन एसएसपी अरुण कुमार, अडिशनल एसपी सत्येंद्रवीर सिंह और डीएसपी राजेश पांडेय की तैनाती कर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया गया। पहले SSP और DSP सेवा से हो रहे हैं रिटायर इस फोर्स में तीन इंस्पेक्टरों ओपी त्रिपाठी, एसके त्रिपाठी और अविनाश मिश्रा को भी तैनाती दी गई। एसटीएफ की शुरुआती टीम का हिस्सा रहे अजय राज शर्मा, सत्येंद्रवीर सिंह के साथ तीनों इंस्पेक्टर पहले ही रिटायर हो चुके हैं। एसटीएफ के पहले एसएसपी रहे अरुण कुमार और डीएसपी राजेश पांडेय बुधवार को पुलिस सेवा से रिटायर हो रहे हैं। अरुण कुमार बुधवार को महानिदेशक आरपीएफ और राजेश पांडेय आईजी चुनाव सेल से सेवानिवृत्त होंगे। काफी तेज था श्रीप्रकाश का नेटवर्क एसटीएफ के डीएसपी रहे राजेश पांडेय ने बताया कि वाकया मई, 1998 का है। एसटीएफ के गठन के कुछ दिनों बाद पहचान छुपाने के लिए हम लोग (वह और तत्कालीन अडिशनल एसपी सत्येंद्रवीर सिंह) फिएट कार से चलते थे। एक दिन हम दोनों पुलिस लाइंस से निकल कर कैसरबाग की तरफ जा रहे थे। रास्ते में पेट्रोल भराने के लिए जैसे ही गाड़ी रोकी, श्रीप्रकाश का फोन आया। उस समय तक न तो पुलिस के पास उसकी पहचान थी और न ही कोई नंबर। फोन कटने के बाद सर्विलांस से पता चला कि कई पीसीओ के जरिए उसने फोन किया था। लेकिन इस फोन से एक बात तो पुष्ट हो गई कि उसका नेटवर्क बहुत तेज था। उसका कोई आदमी हमारा पीछा कर उसे हमारी गाड़ी और कपड़ों तक की जानकारी दे रहा था। लेकिन नहीं बच सका एसटीएफ से एसटीएफ का पहला गुडवर्क था रामू द्विवेदी की गिरफ्तारी। इसके बाद एसटीएफ की मुठभेड़ यूपी और दिल्ली बॉर्डर पर मुन्ना बजरंगी से हुई। इसमें मुन्ना का साथी सत्येंद्र गुर्जर मारा गया, लेकिन नौ गोली लगने के बाद भी मुन्ना बजरंगी बच गया। एसटीएफ ने पुलिस महकमे में इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस की शुरुआत की और इसी के बल पर 21 सितंबर 1998 को गाजियाबाद में श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके दो साथियों को मार गिराया। सर्विलांस से हमेशा अपराधियों से आगे एसटीएफ के गठन के पीछे मुख्य पांच उद्देश्य थे। पहला, संगठित माफिया गिरोहों के बारे में सारी जानकारी एकत्र करना और फिर इंटेलि‍जेंस पर आधारित जानकारियों से उन गिरोहों के खिलाफ ऐक्शन लेना। दूसरा, आईएसआई एजेंट्स, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त अपराधियों और बड़े अपराध‍ियों पर श‍िकंजा कसना शामिल है। तीसरा, जिला पुलिस के साथ समन्वय करके लिस्टेड गिरोहों के खिलाफ ऐक्शन लेना। चौथा, डकैतों के गिरोह और खासकर अंतरराज्यीय डकैतों के गिरोहों पर शि‍कंजा कसके उन पर प्रभावी कार्रवाई करना है। पांचवां और सबसे अहम था...श्रीप्रकाश शुक्ला पर शिकंजा कसना। इस पूरी कवायद ने एसटीएफ ने सर्विलांस के सहारे हमेशा अपराधियों को ट्रैक और ट्रेस किया। अब तक एसटीएफ की सफलता में सर्विलांस का बहुत योगदान है। इसके लिए एसटीफ ने अपनी टीम में जांबाज अधिकारियों के साथ टेक्निकल एक्सपर्ट की टीम को भी पूरा सम्मान दिया।


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