'कोरोना की दूसरी लहर देखी है, तीसरी लहर सामने है, कैसे भेजेंगे बच्चों को स्कूल?'
नई दिल्ली दिल्ली के स्कूल खुलें या अभी नहीं, यह सवाल स्टूडेंट्स और पैरंट्स के दिमाग में घूम रहा है। ज्यादातर पैरंट्स का मानना है कि अभी स्कूल नहीं खुलने चाहिए क्योंकि कोविड के केस अभी भी बने हैं और बच्चों भी संक्रमित हो रहे हैं। कई पैरंट्स का मानना है कि स्कूल क्लास 12 या सीनियर क्लासेज के लिए खोले जाएं मगर छोटे बच्चों के लिए स्कूल अभी बंद रखना जरूरी है। कई पैरंट्स चाहते हैं कि बच्चों को वैक्सीन लगाने के बाद स्कूल खोले जाएं, तो कई का कहना है कि अभी चल रहा वैक्सीनेशन ही कम से कम 80% तो हो। वहीं, दिल्ली सरकार भी स्कूल खोलने के बारे में विचार कर रही है और उसने दिल्ली के पैरंट्स, टीचर्स से सलाह भी मांगी है। मगर कोविड की दूसरी लहर में बिगड़े हालात देखने के बाद पैरंट्स डरे हुए हैं। '85% से ऊपर पैरंट्स नहीं हैं तैयार' स्कूल खोलें या नहीं, इस सवाल को लेकर दिल्ली पैरंट्स असोसिएशन ने एक ऑनलाइन पोल भी कराया था। इसमें अब तक का रिजल्ट कहता है कि 85% से ऊपर पैरंट्स नहीं चाहते कि अभी स्कूल खुलें। असोसिएशन की प्रेजिडेंट अपराजिता गौतम कहती हैं, को देखते हुए अभी स्कूलों को खोलना बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं क्योंकि दूसरी लहर में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव को सभी ने देखा। ऊपर से अभी बच्चों की वैक्सीन भी नहीं आई है। अगर फिर भी सरकार स्कूल खोलना चाहती है तो पहले कोर्ट में बच्चों के स्वास्थ्य की सारी जिम्मेदारी उठाने को लेकर शपथपत्र दे। इसे सार्वजनिक करे और अभिभावकों की राय वोट के ज़रिए मांगे। 'बच्चों की जरूरत हैं स्कूल' हालांकि, स्कूलों का कहना है कि अब धीरे-धीरे करके स्कूल खुलने चाहिए। रोहिणी के माउंट आबू स्कूल की प्रिंसिपल ज्योति अरोड़ा कहती हैं, स्कूल खुलने तो चाहिए मगर छोटे छोटे ग्रुप में स्टूडेंट्स को बुलाकर और सख्ती से कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए। दरअसल, बच्चों की लर्निंग पर नेगेटिव असर पड़ रहा है, उनका समाजीकरण भी अब नहीं रहा। इस वजह से वे जिद्दी, चिड़चिड़े हो गए हैं। दो दिन के लिए स्कूल आए पैरंट्स मगर आएं जरूर। हालांकि, कौन सी एज के लिए स्कूल खुलना चाहिए, इस पर एक्सपर्ट्स की राय लेनी चाहिए। 'जहां खुले स्कूल, वहां दिखा खतरा' मगर पैरंट्स डर और उलझन में हैं। मयूर विहार 1 में रहने वाली नेहा जैन का कहना है कि मेरा बेटा क्लास 10 में है। ऑनलाइन में अच्छी तरह नहीं पढ़ रहा है मगर मैं फिर भी उसे स्कूल भेजने से डरूंगी क्योंकि उनके लिए वैक्सीन नहीं आई है। यो तो फिर स्कूल शिफ्ट में बच्चों को बुलाएं। पिछले बार भी जब स्कूल खुले थे तो कई स्कूल तो कल्चरल फंक्शन के लिए बच्चों को बुलाने लगे थे। अगर सरकार स्कूलों की निगरानी कर सकती है, तभी स्कूल खोलें। साकेत में रहने वाले सौरभ दीक्षित कहते हैं, मई में मेरे घर में दो लोगों को कोविड हुआ था और वो मुश्किल वक्त, सरकार का हेल्थ सिस्टम हमने देखा है। तो पहले ज्यादा से ज्यादा आबादी का वैक्सीनेशन तो हो। इंडोनेशिया में बच्चे कोविड से मर रहे हैं। यूएस में तो डेल्टा वैरिएंट बच्चों को संक्रमित कर रहा है। ऐसे में हम रिस्क कैसे ले सकते हैं। वहीं, तिलक नगर में रहने वाले दीपेश रावत कहते हैं, मेरी बच्ची 7 साल की है और अगर स्कूल खुलते भी हैं तो मैं अभी तो उसे स्कूल बिल्कुल नहीं भेजूंगा। एक्सपर्ट्स का भी कहना है कि अगस्त-सितंबर में तीसरी लहर आएगी। सरकार को पैरंट्स के पोल के हिसाब से नहीं, बल्कि साइंटिफिक तरीके से फैसला लेना चाहिए। बच्चों से परेशान कई पैरंट्स और जिन्हें कोविड की परवाह नहीं, वो तो स्कूल भेजने को तैयार होंगे ही। कोविड की खतरनाक लहर जो देख चुका है, जिसने अपनों को खोया है, वो तो अब फूंक फूंक के कदम रखेगा।
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