एक ही रूट, एक जितना ही समय और वैसी सुविधा, फिर रेलवे क्यों वसूल रहा दोगुना किराया?
टीएन मिश्र, लखनऊ रेल मंत्रालय कम ट्रेनें चलाकर ज्यादा कमाई करने के चक्कर में आम यात्रियों पर बोझ डाल रहा है। जब कोई त्योहार नहीं है तब भी फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनें चलाने की बाढ़ आ गई है। इन ट्रेनों में सफर करने वाले यात्रियों को डेढ़ से लेकर दोगुना तक किराया अदा करना पड़ रहा है। इसके चलते अब ट्रेनों के बजाए लोग बसों में सफर करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। एक ओर सेंट्रल रेलवे, ईस्टर्न रेलवे, वेस्टर्न रेलवे और साउथ ईस्टर्न रेलवे एक्सप्रेस ट्रेनों के साथ पैसेंजर ट्रेनें चलाकर अपने जोन के लाखों लोगों को सुविधा दे रहे हैं तो वहीं उत्तर रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे और उत्तर मध्य रेलवे पैसेंजर ट्रेनें चलाने के लिए अभी तक हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। वहीं रेल मंत्रालय अब कमाई के लिए दूसरे रास्ते निकाल रहा है। उसने कोविड स्पेशल व दूसरी ट्रेनें चलाने के बजाए 196 फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनें चलाकर आम यात्रियों से डेढ़ से लेकर दोगुना तक किराया वसूल रहा है। एक ट्रेन से दो का किराया..बोलने को कोई राजी नहीं एक तरह से देखा जाए तो एक ही ट्रेन चलाकर वह दो ट्रेनों का किराया ले रहा है। रेलवे की इस नीति से आम यात्री कराह रहा है। अगर लखनऊ कोई यात्री श्रमजीवी एक्सप्रेस से वाराणसी जाना चाहता है तो उसे श्रमजीवी में थर्ड एसी के टिकट के लिए महज 585 रुपये देने पड़ेंगे। लेकिन यही यात्री अगर उस रूट की बेगमपुरा फेस्टिवल स्पेशल से सफर करता है तो थर्ड एसी के लिए एसे 1115 रुपये किराया देना पड़ रहा है। ऐसी ही स्थिति दूसरी जगहों की फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों की है। फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों का किराया इतना अधिक क्यों है इस पर रेलवे बोर्ड से लेकर जोनल रेलवे तक के अफसर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। आम लोगों की तकलीफ रेल आम जनता की सवारी मानी जाती है। कम किराए की वजह से यह सभी के लिए सुलभ रहती है। अगर रेलवे ही इस तरह से स्पेशल ट्रेनों के नाम पर वसूली करेगा तो गरीब जनता कैसे सफर करेगी? कोविड के मुश्किल दौर में साधारण ट्रेनें न चलाकर स्पेशल के नाम पर ज्यादा पैसा लेना ठीक नहीं। जिम्मेदार अफसर इस ओर ध्यान दें।
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