दिल्लीः फिर बेकार बह गया बारिश का पानी, रोक लेते तो किल्लत दूर होती

नई दिल्ली राजधानी में बारिश के पानी के संचयन का आज तक कोई ठोस सिस्टम ईजाद ना होने का नतीजा है कि पानी की किल्लत से जूझने वाली दिल्ली में इस मॉनसून सीजन में भी बड़े परिमाण में पानी बहकर बेकार जा रहा है। जुलाई के दूसरे पखवाड़े में पांच दिनों की मूसलाधार बारिश से लोग परेशान हैं, लेकिन यह सारा पानी जमीन के अंदर जाने की बजाय सड़कों पर बहते हुए बर्बाद हो गया। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर बारिश के बदलते पैटर्न के हिसाब से बारिश के पानी को सहेजने के उपाय न किए गए तो आने वाले समय में स्थिति और बिगड़ती चली जाएगी। इस तरह की बारिश से मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर में भूजल स्तर में सुधार की उम्मीद करना बेमानी है। 4 दिनों में ही हुई 300 एमएम बारिश इस साल 19 जुलाई से अब तक चार दिनों के दौरान ही 300 एमएम के करीब बारिश हुई है। जानकार बताते हैं कि 120 एमएम के करीब बारिश में 87 हजार मिलियन लीटर पानी होता है। इस पानी को सहेजना अब अधिक मुश्किल इसलिए हो गया है, क्योंकि बारिश की तीव्रता काफी तेज हो रही है। इसलिए बारिश के पानी को स्टोर करने से जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार लाना जरूरी है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के एक आकलन के अनुसार, राजधानी में पानी की डिमांड रोजाना 2765 मिलियन लीटर यानी 644225 मिलियन लीटर सालाना है। एक व्यक्ति को एक दिन में औसतन 175 लीटर पानी की जरूरत होती है। इसका साफ अर्थ है कि अगर इस साल बारिश के पानी को संरक्षित कर लिया जाता तो दिल्ली में पानी की जरूरत की 20-25 प्रतिशत कमी दूर हो सकती थी। गौरतलब है कि राजधानी का भूजल स्तर हर साल 0.2 से 2 मीटर तक नीचे जा रहा है। 85 फीसदी पानी बहकर जाता है बेकार मॉनसून के दौरान चार महीने में राजधानी में औसत बारिश 617 एमएम होती है जो देश के अन्य हिस्सों की तुलना में काफी कम है। हालांकि एक्सपर्ट के अनुसार अगर इस पानी को हम रिचार्ज के लिए इस्तेमाल कर सकें तो भूजल स्तर में गिरावट नहीं आएगी। पर्यावरण पर काम कर रहे 'सेफ' के विक्रांत तोंगड़ के अनुसार, दिल्ली में खराब प्लानिंग की वजह से बारिश का करीब 85 प्रतिशत पानी बर्बाद चला जाता है। वहीं, रोक के बावजूद राजधानी में भूजल दोहन काफी अधिक हो रहा है। गर्मियों के दौरान पानी की डिमांड और सप्लाई में 150 से 200 एमजीडी का अंतर रहता है। अगर बारिश के पानी का सही उपयोग कर लें तो इस अंतर को 70 से 80 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। वहीं पर्यावरणविद दिवान सिंह का कहना है कि झीलों को रिवाइव करने पर भी उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा। एक्सपर्ट के अनुसार, अगर राजधानी में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पर सही तरीके से काम किया जाए तो राजधानी को इससे 900 बिलियन लीटर पानी मिल सकता है। वहीं, अगर सिर्फ छतों पर ही काम किया जाए तो हरेक मॉनसून के दौरान औसतन 27 मिलियन लीटर पानी मिल सकता है। क्या समस्या है RWH सिस्टम लगवाने में
  • इसे लगाना खर्चीला है। सोसायटी में इसे लगवाने पर 10 से 20 लाख रुपये का न्यूनतम खर्च आता है
  • जलभराव वाली जगहों पर चयन कर इसे लगाया जा सकता है, ताकि वह पानी सीधा जमीन में जा सके
  • बारिश के पानी को झीलों, तालाबों और जोहड़ों तक पहुंचाने के इंतजाम होने चाहिए ताकि झीलें हर साल रिचार्ज हों
मास्टर प्लान-2041 में पानी की जरूरत का अनुमान
साल डिमांड
2020 1140 एमजीडी
2031 1746 एमजीडी
2041 1455 एमजीडी
अभी का प्रोडक्शन 935 एमजीडी
अभी डिमांड और सप्लाई का गैप 141 एमजीडी


from Metro City news in Hindi, Metro City Headlines, मेट्रो सिटी न्यूज https://ift.tt/3jpHmAz

Comments

Popular posts from this blog

फडणवीस की पत्नी ने पुकारा तो कंधे पर बैठ गया दुर्लभ 'टाइगर', यूं मिली नई जिंदगी!

चाय की जगह काढ़ा, सोशल डिस्टेंसिंग...UP असेंबली का बदला सा नजारा

वर्ल्ड किडनी डेः किडनी की बीमारी अब युवाओं पर पड़ रही भारी