ब्लॉगः कहीं हमने अपने दिमाग में भी तो कोई एसी नहीं फिट करा लिया है?

गर्मी के मौसम को लेकर कोई अच्छी बात अब भूले से भी सुनने को नहीं मिलती। पसीना, चिपचिप, धूल-धुआं और घुटन। अप्रैल, मई और जून के ये महीने हर साल आखिर क्यों चले आते हैं? अजीब बात है कि इतनी दुष्ट छवि के बावजूद लोगों से बात करें तो उनके जीवन की सबसे अच्छी स्मृतियां गर्मियों से ही जुड़ी जान पड़ती हैं। स्कूल की छुट्टियां। पढ़ाई से आजादी। भरी दोपहरी में बड़ों की नजर बचाकर दोस्तों के साथ फुर्र हो जाना। फालसे का शरबत। रूह अफजा वाली लस्सी, मोटी मलाई मारके। जलती धूप में चलते-चलते किसी पीपल तले सुस्ता लेना। वहां झुरझुर हवा ऐसी कि पेड़ की जड़ पर उठंगे हुए ही एक नींद निकाल देना। सूरज नीचे जाने के साथ दरवाजे पर पानी छिड़कने की खुशबू, जिसको कहीं से भी पा लेने के लिए आप छिंगुली भर की शीशी में मिट्टी वाला कनौजिया इत्र खरीदते हैं!

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